गुरूग्राम से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित समकालीन गांव दौला में स्थित ऐतिहासिक मंदिर में माता के भक्तों की भीड़ उमड़ती है। खोबरी देवी को समर्पित यह पवित्र स्थान कई वर्षों से असंख्य अनुयायियों की भक्ति का केंद्र बिंदु रहा है।
मंदिर की प्राचीनता ने न केवल दिल्ली और गुरुग्राम, बल्कि विभिन्न राज्यों से भी लोगों की व्यापक आस्था जगाई है, जो पूजनीय मां को श्रद्धांजलि देने के लिए इस मंदिर की यात्रा करते हैं।
नवरात्रि के दौरान सप्तमी के अवसर पर यहां आने वाले भक्तों की भीड़ देखते ही बनती है। इस मंदिर की अनूठी विशेषता यह है कि यहां देवी मां की मूर्ति स्थायी रूप से स्थापित नहीं है; इसके बजाय, जब किसी भक्त की मन्नत पूरी हो जाती है, तो वे मूर्ति को घर ले जाते हैं और पूरी रात जागते हैं। अगली शाम, मूर्ति को मंदिर में वापस कर दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवी मां की मूर्ति अरावली पहाड़ी से निकली थी, जिससे इसे एक अलग महत्व मिला।
मंदिर का इतिहास
मान्यता के आधार पर कहा जाता है कि एक बार दौला गांव में एक प्रमुख भगत थे, जिन्हें एक सपना आया जिसमें देवी मां ने उन्हें दर्शन दिए। देवी ने उन्हें बताया कि अरावली पर्वत पर स्थित जल कुंड में एक मूर्ति थी, जिसे पिछले दिनों ले जाया गया था। परिणामस्वरूप, उस स्थान पर देवी माँ को समर्पित एक मंदिर का निर्माण किया गया। तब से यह मंदिर स्थानीय समुदाय के लिए आस्था का महत्वपूर्ण प्रतीक बना हुआ है।
यह विशेषज्ञता का भी क्षेत्र है
इसके विपरीत, जो बात मंदिर को विशेष बनाती है वह यह है कि यह विशेष रूप से अनुसूचित जाति के व्यक्तियों को देवी मां की मूर्ति और मंदिर के पुजारी के रूप में सेवा करने के लिए नियुक्त करता है। ऐसा माना जाता है कि ये प्रथाएं प्राचीन काल में जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए स्थापित की गई थीं और आज भी इनका पालन किया जाता है। मंदिर के निवास स्वामी ने कहा है कि यह एक ऐसा स्थान है जहां के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। इसके अतिरिक्त, मंदिर के पास पानी के कुंड में शेरों को अक्सर देखा गया है, जो अरावली पहाड़ी के करीब स्थित है। हालाँकि, मंदिर का स्थान अपने दार्शनिक महत्व के लिए जाना जाता है। इसके अलावा, मंदिर के विस्तार के बाद, भक्तों की सुविधा को पूरा करने के लिए विभिन्न व्यवस्थाएं की गई हैं। फिलहाल मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी 11 सदस्यों की एक टीम के पास है।