इंसान खुद को अपने मोहल्ले, गांव, शहर में सबसे मजबूत मानता है. राजनीतिक परिदृश्य में देखें तो उम्मीदवार वहीं से टिकट मांगते हैं जहां उनका घर होता है. या उनके बड़े-बुजुर्गों का वहां से रिश्ता हो.
इसकी वजह होती है कि वो वहां की हर स्थिति से वाकिफ होता है. लोगों का जनसमर्थन भी उसके साथ ही होता है. कहानी यहां से शुरू नहीं होती. दरअसल, हम जिक्र करने जा रहे हैं कांग्रेस के यूपी कनेक्शन का और उसी यूपी में उसके राजनीतिक जनाधार का. जनाब साहिर लुधिनायवी साहब का एक मशहूर शेर मुझे यहां याद आ रहा है. अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है, ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ.
आप सोच रहें होंगे कि राजनीति बातचीत में शेर का क्या ताल्लुक? तो मैं आपको बता दूं कि कांग्रेस के लिए फिलहाल अभी की हालात पर सटीक है. पार्टी को हिमाचल और एक दिन पहले ही कर्नाटक में जीत मिली है. पार्टी के लिए ये खुशी का लम्हा है. 2014 के बाद से कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार गिरता रहा है. कार्यकर्ताओं में निराशा छा गई. सीनियर लीडर्स पार्टी छोड़ गए. एक के बाद एक राज्य से सत्ता गिरती जा रही थी. उसी बीच खुशी के चार झोंके कांग्रेस के दर से भी गुजर गए. लेकिन गांधी-नेहरू परिवार की राजनीतिक सरज़मी जिस उत्तर प्रदेश से रही वहां कांग्रेस का जनाधार एकदम खत्म होता जा रहा है. नगर निकाय चुनाव इसका गवाह है. जहां पर आप जैसी पार्टी को सीटें मिल गई मगर कांग्रेस एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई. ऐसा क्यों?
यूपी और गांधी-नेहरू परिवार
अमेठी, रायबरेली, तब इलाहाबाद अब प्रयागराज, सुल्तानपुर, पीलीभीत, आंवला, सीतापुर, फूलपुर. ये यूपी की वो सीटें हैं जहां पर सिर्फ और सिर्फ गांधी-नेहरू परिवार के सदस्य ही चुनाव लड़ते थे और जीतते भी थे. इसीलिए इन सीटों की गिनती VVIP सीटों में होती थीं. चुनाव तो यूपी में होता था मगर नजरें पूरे देश की होती थी. मगर समय के साथ इस परिवार का जनाधार लगातार कम होता चला गया. भले ही आज गांधी परिवार का कोई भी सदस्य देश के किसी भी हिस्से से चुनाव लड़ रहा हो लेकिन सभी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत यूपी से ही किया. उदाहरण हम आपको गिनाते हैं.
यूपी में कितनी सीटों पर इस परिवार का प्रभाव
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू फूलपुर सीट से जीतकर आए थे. जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी रायबरेली सीट से चुनाव जीततीं रहीं. इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी रायबरेली सीट से चुनाव लड़े. उमा नेहरू (जिनको बहुत कम लोग जानते हैं लेकिन ये नेहरू परिवार के सबसे करीबी सदस्य रहीं) सीतापुर से चुनाव लड़ीं. पं. जवाहर लाल नेहरू की सगी बहन विजय लक्ष्मी पंडित फूलपुर सीट से चुनाव लड़ीं. इंदिरा गांधी के बेटे राजीव और संजय दोनों अमेठी से चुनाव लड़ते रहे.
दिल्ली की गद्दी का रास्ता वाया यूपी
संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी पीलीभीत से संसदीय चुनाव लड़ीं.राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी अमेठी और रायबरेली से चुनाव लड़ीं और जीतती भी रहीं. आज भी सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद हैं. सोनिया-राजीव के बेटे राहुल गांधी अमेठी से जीतते रहे. मगर 2019 में कहानी उलट गई. बीजेपी की स्मृति ईरानी ने उनको हरा दिया. कांग्रेस के लिए ये बहुत बड़ी हार थी. राहुल गांधी अगर केरल की वायनाड सीट से चुनाव न लड़ते तो शायद संसद का मुंह तक न देख पाते. पार्टी आज भले ही कर्नाटक की जीत का जश्न मना रही हो, मनाना भी चाहिए मगर ये सब जानते हैं कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता यूपी से होकर ही गुजरता है. जहां पर लोकसभा की सबसे ज्यादा 80 सीटें हैं.
यूपी में कांग्रेस कमजोर क्यों?
इसके पीछे कई कारण हैं. उनपर विस्तार से चर्चा फिर कभी करेंगे. मगर यूपी की नाराजगी इतनी बढ़ गई है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की अपील का भी कोई खास असर नहीं पड़ा. विधानसभा चुनाव के दौरान प्रियंगा गांधी वाड्रा ने बहुत ही अग्रेसिव प्रचार किया था मगर कोई फायदा नहीं हुआ. प्रियंका गांधी यूपी की प्रभारी हैं मगर बीते साल जुलाई के बाद से आज तक प्रदेश कांग्रेस कार्यालय नहीं पहुंची. यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपनी पार्टी के प्रचार में दिन रात एक कर दिया मगर प्रियंका गांधी कर्नाटक चुनाव में बिजी होने के चलते यूपी नहीं पहुंची. कार्यकर्ताओं में इसके कारण नाराजगी भी है. जबकि दूसरी तरफ बीजेपी ने अपने प्रत्याशियों के लिए खूब प्रचार किया. इसी का नतीजा है 17 की 17 निगम में भाजपा का कब्जा हुआ. फिलहाल आज गांधी-नेहरू परिवार का गढ़ रहे यूपी ने पूरी तरह से पार्टी को नकार दिया है.